राज्यपाल से मिले भाजपा नेता, महापौर के निलम्बन आदेश को रद्द करने की मांग

- प्रदेशाध्यक्ष पूनियां सहित भाजपा नेताओं ने राज्यपाल को सौंपा ज्ञापन

 - प्रतिनिधिमण्डल में गुलाबचन्द कटारिया, राजेन्द्र राठौड़, डॉ. अरूण चतुर्वेदी, रामचरण बोहरा, मनोज राजौरिया, राघव शर्मा, नरपत सिंह राजवी, डॉ. सौम्या गुर्जर और पुनीत कर्णावट रहे मौजूद


जस्ट टुडे
जयपुर।
भाजपा प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां की अगुवाई में वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने राज्य में कांग्रेस सरकार द्वारा कानून का दुरुपयोग कर जयपुर नगर निगम ग्रेटर की निर्वाचित भाजपा की महापौर डॉ. सौम्या गुर्जर व निर्वाचित भाजपा पार्षद अजयसिंह चौहान, शंकर शर्मा व पारस जैन के निलम्बन आदेश के विरूद्ध राज्यपाल कलराज मिश्र को ज्ञापन सौंपा। इसमें मांग की गई कि तथ्यों को देखते हुए राज्य सरकार की ओर से जारी किए गए आदेश को अपास्त करके महापौर डॉ. सौम्या गुर्जर व पार्षद अजय सिंह चौहान, पारस जैन और शंकर शर्मा का निलम्बन बहाल किया जाए। इस दौरान प्रतिनिधिमण्डल में डॉ. पूनियां के साथ नेता प्रतिपक्ष गुलाबचन्द कटारिया, उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष डॉ. अरूण चतुर्वेदी, जयपुर शहर सांसद रामचरण बोहरा, करौली-धौलपुर सांसद मनोज राजौरिया, जयपुर शहर अध्यक्ष राघव शर्मा, विधायक नरपत सिंह राजवी, महापौर डॉ. सौम्या गुर्जर, उपमहापौर पुनीत कर्णावट मौजूद रहे। 

ज्ञापन में राज्यपाल से यह की गई मांग 

- जयपुर महानगर में नगर पालिका अधिनियम 2009 के अन्तर्गत अक्टूबर 2020 में नगर निगम गे्रटर जयपुर महानगर के पार्षदगणों का चुनाव सम्पन्न हुआ था, जिसमें भाजपा की डॉ. सौम्या गुर्जर महापौर चुनी गईं। नगर निगम जयपुर गे्रटर में भाजपा की महापौर व बोर्ड बनने के बाद से ही राज्य की कांग्रेस सरकार में नगर निगम जयपुर गे्रटर की महापौर व बोर्ड के कार्यों में बाधा पहुंचाना शुरू कर दिया गया, बोर्ड के चैयरमेनों के निर्वाचन के मामले में भी राज्य सरकार ने अड़चन की, तब राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश के बाद ही विभिन्न समितियों के चैयरमेन अपना पद ग्रहण कर पाए। इस प्रकार राज्य की कांग्रेस सरकार की ओर से भाजपा के बोर्ड को कानून की गलत व्याख्या कर अस्थिर करने का प्रयास किया जा रहा है। 

- वर्तमान में जयपुर नगर निगम गे्रटर के क्षेत्र में सफाई व्यवस्था जिस कम्पनी को दी गई थी। उस बी.वी.जी. कम्पनी द्वारा सफाई कार्य ठीक से सम्पादित नहीं किया जा रहा था। साथ ही हड़ताल कर दी गई थी, जिससे शहर में सफाई व्यवस्था चरमरा गई और गन्दगी के ढेर होने लगे। कोविड महामारी के दौरान गन्दगी से महामारी फैलने के अंदेशे से जनता में भय व्याप्त था, जनता के भय व शिकायत को देखते हुए महापौर डॉ. सौम्या गुर्जर ने 4 जून को अपने कक्ष में सफाई व्यवस्था की वैकल्पिक व्यवस्था करने के लिए एक बैठक रखी, जिसमें नगर निगम आयुक्त यज्ञमित्र सिंह व अन्य अधिकारियों को बुलाया गया। राजस्थान नगर पालिका अधिनियम 2009 के अनुसार नगर निगम के सभी अधिकारी महापौर के अधीन होते हैं। ऐसे में आयुक्त यज्ञमित्र सिंह महापौर द्वारा बुलाई गई अहम बैठक को बगैर महापौर की अनुमति लिए बीच में ही छोड़कर जाने लगे। इस पर महापौर व उपस्थित अन्य पार्षदगणों द्वारा आपत्ति किए जाने पर आयुक्त यज्ञमित्र सिंह आवेश में आ गए और महापौर को धमकी दी, कम्पनी के बिलों का भुगतान पहले करना पड़ेगा, अन्यथा मैं जा रहा हूं। महापौर का कथन था कि कम्पनी के बिलों की जांच करवाकर ही भुगतान किया जाएगा। लेकिन शहर में सफाई की वैकल्पिक व्यवस्था अत्यावश्यक है, लेकिन आयुक्त अपनी बात पर अड़े रहे तथा महापौर के निर्देश को मानने से साफ मना कर दिया और बैठक को बिना महापौर की अनुमति के छोड़कर चले गए। इस प्रकार आयुक्त यज्ञमित्र सिंह का कृत्य गम्भीर दुराचरण की परिभाषा में आता है। बैठक के बाद आयुक्त ने सोची-समझी साजिश के तहत राज्य सरकार के इशारे पर पुलिस में एक झूठी रिपोर्ट दर्ज करवाई तथा स्वायत्त शासन विभाग में झूठी शिकायत की, जिस पर राज्य सरकार ने पूर्व से निर्धारित साजिश के तहत कनिष्ठ अधिकारी रेणु खण्डेलवाल को घटना की जांच सौंप दी। रेणु खण्डेलवाल ने महापौर व अन्य पार्षदगणों को जांच में सुनवाई का अवसर ही नहीं दिया, जबकि महापौर व अन्य पार्षदगणों द्वारा जवाब के लिए व साक्ष्य हेतु उचित समय मांगने का प्रार्थना-पत्र, मय माननीय उच्चतम न्यायालय के द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत जो ्रढ्ढक्र 1972 सुप्रीम कोर्ट पेज 25 38 पर दिया गया था, प्रस्तुत किया। लेकिन जांच अधिकारी ने बचाव सुनवाई का अवसर ही प्रदान नहीं किया तथा मात्र 48 घण्टे की अवधि में दिनांक 6 जून को एक तथ्यहीन भ्रामक व विधि विरूद्ध जांच रिपोर्ट बनाकर सरकार को सौंप दी। उक्तरिपोर्ट को पढऩे मात्र से ही स्पष्ट है कि उक्त रिपोर्ट सरकार के दबाव में राजनीतिक साजिश के तहत भाजपा की निर्वाचित महापौर व पार्षदगणों को हटाने के कपटपूर्ण आशय से तैयार की गई है। जांच रिपोर्ट में जांच अधिकारी पैरा 13 लगायत 20 में महापौर व अन्य पार्षदों के बयान का कथन किया है, जबकि स्पष्ट है कि महापौर ने कोई बयान व जवाब प्रस्तुत ही नहीं किया, मात्र जवाब व साक्ष्य के लिए समय मांगा था। इसी प्रकार जांच में नगर निगम वरिष्ठ अधिकारी बृजेश चांदोलिया अतिरिक्त आयुक्त के बयान दर्ज हैं, जिसमें उन्होंने किसी भी प्रकार से आयुक्त के साथ मारपीट होना नहीं कथित किया है। जांच अधिकारी की ओर से जो निष्कर्ष दिया गया है वह आधारहीन तथा राज्य सरकार के निर्देश पर विधि विरूद्ध दिया गया है।

- महापौर की ओर से राज्य कार्य के लिए ही बैठक निगम मुख्यालय में बुलाई गई थी, ऐसे में आयुक्त का बगैर महापौर की अनुमति के जाना राज्य कार्य में बाधा डालना स्पष्ट होता है। लेकिन जांच अधिकारी ने इन तथ्यों पर कोई निष्कर्ष नहीं दिया।

- इस प्रकार स्पष्ट रूप से राज्य सरकार ने कानून का दुरूपयोग किया है। यह इससे भी स्पष्ट है कि राजस्थान के अलवर शहर में कांगे्रस समर्थित नगर पालिका व सभापति हैं, जिनके विरूद्ध कोतवाली अलवर में प्रथम सूचना रिपोर्ट नं. 471/2020 इस आशय की दर्ज कराई गई थी कि उन्होंने अपने कक्ष में बुलाकर अधिकारी के चाटा मार दिया। उक्त घटना की जांच कराकर राज्य सरकार ने राजस्थान नगर पालिका अधिनियम 2009 के तहत जांच रिपोर्ट के आधार पर अग्रिम कार्यवाही के लिए पत्रावली जिला एवं सत्र न्यायाधीश कैडर के अधिकारी को सौंप दी, लेकिन वहां सभापति को निलम्बित नहीं किया गया। इससे राज्य सरकार की दुर्भावना व कानून का दुरूपयोग स्पष्ट है। इसके अतिरिक्त जयपुर की जांच रिपोर्ट के अध्ययन मात्र से ही यह स्पष्ट है कि यदि इस जांच रिपोर्ट को समग्र रूप से पढ़ा जाए, तो सिर्फ धक्का-मुक्की होने का कथन ही सामने आता है। फिर भी निलंबन की कार्यवाही राज्य सरकार की स्पष्ट दुुर्भावना दर्शाता है। 

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