सांगानेर की इस वानर सेना का काज...अयोध्या में राम राज

- सांगानेर से भी जुड़े हैं अयोध्या के तार, राम का वनवास खत्म कराने में अहम योगदान



जस्ट टुडे
सांगानेर। अयोध्या में भव्य राम मंदिर की नींव और भूमिपूजन 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से किया जाएगा। यह प्रत्येक भारतवासी के लिए गौरव का पल होगा। इसके लिए ना जाने भारत मां के कितने सपूतों ने अपने प्राण अर्पण किए, ना जाने कितनी माताओं ने अपने कलेजे पर पत्थर रखे। तमाम बाधाओं को पार करते हुए आखिरकार प्रत्येक भारतवासी का सपना साकार हो रहा है। अयोध्या में राम राज की स्थापना के पीछे सांगानेर का भी अहम रोल है। वर्ष 1990 में करीब 38 कार सेवक और वर्ष 1992 में करीब 25 कार सेवक सांगानेर से अयोध्या गए थे। राम मंदिर का सपना लेकर गए इन कार सेवकों के सामने लाख चुनौतियां आईं। इन्होंने पुलिस की लाठी और गोली तक खाई, लेकिन, अपने इरादों से पीछे नहीं हटे। कारसेवकों की आंखों में नींद भले ही नहीं होती थी, लेकिन, राम मंदिर का संकल्प झलकता था। नीले आसमान के तले जब वे सभी कार सेवक साथ लेटते थे, तो मंदिर निर्माण की ही बातों में सुबह हो जाती थी। जयपुर में उनके परिवार वाले बेचैन थे। कार सेवकों की मौत की खबर आते ही सभी परिवार वालों के रौंगटे खड़े हो जाते थे। अब अयोध्या में राममंदिर निर्माण की आधारशिला रखी जा रही है, तब इन सभी कारसेवकों का सीना गर्व से छप्पन इंच का हो गया है। इस मौके पर जस्ट टुडे सांगानेर के इन भूले-बिसरे वॉरियर्स को पाठकों से रूबरू करवा रहा है। 


...और गोली सीने के आर-पार



सांगानेर निवासी रतनलाल चौधरी
वर्ष 1990 में कारसेवकों के साथ अयोध्या गए थे। उन्होंने बताया कि बड़ी मुश्किलों से पैदल-पैदल अयोध्या पहुंचे। चौधरी ने बताया कि तत्कालीन सरकार ने 30 अक्टूबर 1990 को सरयू नदी के पुल पर गोलीबारी करवाई थी, जिसमें अनेक कार सेवक मारे गए थे। उसके बाद माहौल शांत हो गया था। 2 नवम्बर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन कार सेवकों ने सरयू नदी में स्नान किया और शांतिपूर्वक रामलला की तरफ बढ़ रहे थे। उस दौरान अयोध्या के हनुमानगढ़ी चौराहे पर तत्कालीन सरकार ने कार सेवकों पर गोलियां चलवाईं। उस समय एक गोली मुझे भी आकर लगी, जो मेरे सीने के आर-पार हो गई। फैजाबाद के श्रीराम हॉस्पिटल में भर्ती रहा। गोली लगने के बाद बोलने की शक्ति नहीं रही थी, लेकिन, मन में विचार आ रहा था कि अब मैं बचने वाला नहीं हूं। तीन दिन बाद हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हुआ और करीब 15 दिन बाद जयपुर लौटा। फिर यहां करीब 15 दिन एसएमएस अस्पताल में भर्ती रहा। उस समय उत्साह जबरदस्त था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने हमारी सेवा को सफल बना दिया।


गांव वालों ने की पूरी मदद



सांगानेर मुख्य बाजार स्थित पारीक स्टेशनरी के संचालक अनिल पारीक ने बताया कि वर्ष 1990 में उनकी उम्र महज 20 साल की थी। उस समय वे एबीवीपी के कार्यकर्ता थे। सांगानेर विधानसभा से करीब 38 कार सेवक ट्रेन के जरिए जयपुर से लखनऊ गए थे। उनके साथ अरुण पारीक, मुरली मनोहर पारीक, महेन्द्र आंचलिया, कुलदीप जैन, दीपक पथोसिया, रतनलाल चौधरी सहित कई लोग गए थे। उस समय गाजियाबाद से ही गिरफ्तारी शुरू हो गई थी। हम सभी लोग चोरी-छिपे, रात में खेत-खलिहानों को पार करते करीब 8 दिन में अयोध्या पहुंचे। इस दौरान गांव वालों ने उनकी पूरी मदद की। उन्हें सिर छिपाने को जगह दी, खाना खिलाया और एक-जगह से दूसरी जगह छुड़वाने में मदद की। उस समय हम सभी लोगों ने अपनी जान दांव पर लगा दी थी। आंखों के सामने लोगों को गोलियां लगते देखीं। पुलिस तो उनकी सहायता करती थी, लेकिन, तत्कालीन सरकार ने होमगाड्र्स की भर्ती की थी, वे गोलियां मारने में देर नहीं कर रहे थे।
 
साथी को गोली लगी तो सब डर गए

उन्होंने बताया कि उनके साथ गए रतनलाल चौधरी को भी गोली लगी। उस मंजर को देखकर हम सभी बहुत डर गए। अनिल पारीक ने बताया कि इस समय जहां रामलला विराजमान हैं, उसके चारों तरफ की दीवार को कार सेवकों ने बिना साधनों के ही बना दिया। हमने भी दीवार बनाने में पूरा सहयोग किया। उन्होंने बताया कि जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया तो उस दिन में बहुत रोया। ये आंसू खुशी के थे, मैं स्वयं को भाग्यशाली मानता हूं कि जिस मंदिर का संकल्प लेकर हम वर्ष 1990 में हम गए थे, अब उसे हम बनते हुए देख पाएंगे।


इस जीवन में मंदिर बनते देख पाना परम सौभाग्य



वर्तमान में सांगानेर भाजपा मंडल अध्यक्ष ओमप्रकाश शर्मा ने बताया कि वर्ष 1992 में सांगानेर से करीब 25 कार सेवक अयोध्या गए थे। यह वर्ष 1992 में सांगानेर से अयोध्या जाने वाले पहला ग्रुप था, उसके बाद कई अन्य ग्रुप भी गए थे। शर्मा ने बताया कि उनके साथ श्रीप्रकाश तिवाड़ी, बिरदीचंद खटीक, अनिल पारीक, डॉ. इन्द्रलाल संतलानी, जयपुर के पूर्व उपमहापौर घनश्याम बगरेट, प्रदीप जैन, मदन गुर्जर, सत्तूमल नेता, मुरली मनोहर पारीक सहित कई अन्य कार सेवक गए थे। सांगानेर भाजपा मंडल अध्यक्ष ओमप्रकाश शर्मा ने बताया कि सभी कार सेवकों ने 6 दिसम्बर 1992 को विवादित ढांचा ढहाया और जमीन को समतल किया। विवादित ढांचे को सरयू नदी में डाल दिया। विवादित स्थल की खुदाई के दौरान मंदिर सम्बंधी जैसे घंटे-घडिय़ाल आदि वस्तुएं निकली थीं। वहीं पर पुरातत्व विभाग का ऑफिस था, उन सभी वस्तुओं को वहां जमा करा दिया। उस समय सभी कार सेवकों की इच्छा थी कि भगवान राम का भव्य मंदिर बने। उस समय रामलाल साधारण चबूतरे और टैंट में विराजमान थे। अब अयोध्या में राममंदिर की आधारशिला रखी जा रही है, ये पल हमारे लिए गौरवान्वित करने वाले हैं कि हम इस पुनीत कार्य को होते देख पा रहे हैं। 


विस्मरणीय है यह पल


श्री प्रकाश तिवाड़ी ने बताया कि वर्ष 1992 में हम अयोध्या गए थे। करीब 15 दिन वहां रुके थे। टैंट के नीचे सोए, जो मिल गया  वो खा लिया। राममंदिर का संकल्प था, इसलिए किसी भी प्रकार की सुविधा का मोह नहीं था। उस समय करीब 28 साल की उम्र थी। जिस कार्य के लिए उस समय गए थे, वो इतने वर्षों बाद आखिकार पूरा हो गया। सुप्रीम कोर्ट फैसला बहुत ही सराहनीय था। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मंदिर निर्माण कार्य का आगाज कर रहे हैं, ये पल हमारे लिए विस्मरणीय है। 


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