सीएम गहलोत के आदेश दरकिनार, आरोपी को ही 'इनाम'

- राजस्थान कौशल एवं आजीविका विकास निगम में अफसर 'कौशल' दिखा चला रहे 'आजीविका' और कर रहे अपना 'विकास'



जस्ट टुडे

जयपुर। प्रदेश के मुख्यमंत्री भले ही अशोक गहलोत हों, लेकिन, अफसर शायद ऐसा नहीं मानते हैं। तभी तो जिस व्यक्ति के खिलाफ सीएम अशोक गहलोत को शिकायत की गई थी, उसी व्यक्ति को अफसरों ने अतिरिक्त जिम्मेदारी देकर 'इनाम' दे दिया है। खास बात यह है कि अतिरिक्त कार्यभार मिलने के बाद वह व्यक्ति अपने आरोपों की जांच अब खुद ही करेगा। भ्रष्टाचार को संरक्षण देने का यह खुला खेल राजधानी में सरकार की नाक के नीचे ही चल रहा है। ऐसे में छोटे जिलों में अफसर क्या गुल खिला रहे होंगे, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। भ्रष्टाचार को संरक्षण देने का यह खुला खेल राजस्थान कौशल एवं आजीविका विकास निगम में चल रहा है। जस्ट टुडे में जानिए पूरी कहानी...


कैग रिपोर्ट में भी खुलासा


दरअसल, अभी हाल ही में राजस्थान कौशल एवं आजीविका विकास निगम में प्रबंधक घनश्याम शर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत सूबे के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को की गई थी। अहम बात यह है कि शिकायत राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के एक बड़े पदाधिकारी ने की थी। शिकायती पत्र में कैग ऑडिट रिपोर्ट का हवाला देकर आरोप लगाया गया था कि आरएसएलडीसी में 'नाइस कम्प्यूटर' (Nice Computer)  नाम से संस्था को 'डीडीयू-जीकेवाई' (DDU-GKY) योजना में कार्य स्वीकृत किया गया था। कार्य की एवज में राशि जारी करने से पूर्व विभाग की ओर से बैंक गारण्टी जमा की जाती है। परन्तु इस संस्था में ब्याज जो करीब 16 लाख रुपए की रिकवरी थी, को जमा नहीं करवाया गया। साथ ही विभाग के अधिकारियों की ओर से बैंक गारण्टी से रुपए लिए जाने के बजाय उसे लैप्स हो जाने दिया। दिलचस्प पहलू यह है कि अब रुपए रिकवर करने के लिए कोर्ट केस किया जा रहा है। इससे आरएसएलडीसी और सरकार पर अनावश्यक वित्तीय भार बढ़ा हुआ है। जनता के पसीने की कमाई का दुरुपयोग हुआ है। 


एक करोड़ की राशि हो जाने दी लैप्स



शिकायत में यह भी बताया गया था कि अन्य संस्था 'फोकस एजु केयर' (Focus Edu Care) को द्वितीय किश्त में मई, 2018 में एक करोड़ से ज्यादा की राशि जारी की गई तथा संस्था की ओर से दी गई बैंक गारंटी कार्य पूरा होने से पूर्व जून, 2018 में ही विभाग की ओर से लैप्स हो जाने दी गई। अब इस मामले में भी करोड़ों रुपए की राशि रिकवरी के लिए कोर्ट केस द्वारा किया जाएगा, जबकि इसका एक भाग बैंक गारंटी द्वारा लिया जा चुका होता। 
इतना ही नहीं वित्तीय भार बढ़ाते हुए तथा पद की गरिमा के अनुरूप कार्य नहीं करते हुए वित्तीय अनियमितताओं में जानबूझ कर शामिल होते हुए एक और संस्था 'एसएससीआई' (SSCI) को 5 वर्ष से ज्यादा का समय दिया गया, जबकि उक्त संस्था ने पिछले दो साल से कोई कार्य नहीं किया है। लाखों रुपए की बैंक गारंटी भी पहले ही लैप्स हो जाने दी गई और विभाग में कार्यरत अधिकारी बिना जवाब देही के कोर्ट केस का हवाला देते हुए मामले को दबाने में लग जाएंगे।


केन्द्र और राज्य सरकार को लगाई 6 करोड़ की चपत


शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया कि निफा नामक संस्था की भी 'मोर्ड' (MORD) से शिकायतें मिलीं। उक्त संस्था ने प्लेसमेंट में फर्जीवाड़ा किया है। इससे सम्बंधित पहले भी कई शिकायतें प्राप्त हुईं। उक्त मामले की जांच के दौरान कार्यरत 'पीएमसीए' (PCMA) के कार्मिक ललित माहेश्वरी (रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी) को भी जांच से हटाने का दबाव डालकर बाहर निकाल दिया गया है। संस्था के रिकॉर्ड जांचने पर यह भी पता चलेगा कि प्लेसमेंट से सम्बंधित वीडियों कभी बनाए ही नहीं गए, जो एसओपी के अनुसार अतिआवश्यक हैं। उक्त संस्था के फर्जी कार्यवाही में मिलीभगत कर एसओपी का उल्लंघन करते हुए सम्बंधित अधिकारियों की ओर से नवम्बर 2018 में 6 करोड़ रुपए से ज्यादा का भुगतान भी कर दिया गया है। पद का दुरुपयोग करते हुए करोड़ों रुपए की चपत भारत सरकार तथा राजस्थान सरकार दोनों को लगा दी गई है। शिकायत में इन सभी आरोपों के लिए राजस्थान कौशल एवं आजीविका विकास निगम में प्रबन्धक घनश्याम सिंह को बताया गया। 


सीएमओ ने गठित की थी कमेटी


इस शिकायती पत्र के बाद सीएमओ की तरफ से तीन सदस्यीय कमेटी का गठन भी किया गया। इसमें सोविला माथुर, महाप्रबंधक (प्रशासन), रवि मीना, डीजीएम प्रथम और हीरालाल खटीक, एएओ को शामिल किया गया। सीएमओ की तरफ से कमेटी को इन आरोपों की जांच कर जल्द से जल्द रिपार्ट भेजने के निर्देश दिए गए थे। 


महाप्रबंधक (प्रशासन) ने दे दिया 'इनाम'


मजेदार बात यह है कि इसी बीच सोविला माथुर, महाप्रबंधक (प्रशासन) ने जांच पूरी हुए बिना ही प्रबंधक घनश्याम शर्मा को 'डीडीयू-जीकेवाई' स्कीम का अतिरिक्त कार्यभार भी दे दिया है। जिन मामलों में भ्रष्टाचार की शिकायत की गई है, अब उसी विभाग का अतिरिक्त कार्यभार मिलने के बाद जांच कैसे होगी, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। यानी जिस व्यक्ति के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत की गई है, अब वह आराम से फाइलों में हेर-फेर कर सकता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि निगम में नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार जड़ें जमा चुका है। 


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