पायलट का 'हाथ' रहेगा कांग्रेस के साथ !

- पायलट का सरकार पर आरोप कि सरकार ने उन्हें नहीं दी उपमुख्यमंत्री पद की तवज्जो



जस्ट टुडे

जयपुर। राजस्थान के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट पिछले कुछ समय से पार्टी से नाराज चल रहे हैं। उनकी नाराजगी इस कदर बढ़ गई है कि उन्होंने 30 विधायकों के समर्थन का दावा कर दिल्ली का रुख कर लिया। हालांकि दिल्ली में सचिन पायलट को राहुल गांधी से मिलने का समय नहीं मिला। बताया जा रहा है कि सचिन पायलट गुड़गांव स्थित एक होटल में विधायकों की बड़े बंदी किए हुए हैं। सूत्रों के अनुसार सचिन पायलट गहलोत सरकार को अस्थाई करना चाहते हैं इसके लिए शायद सचिन पायलट ने ज्योतिरादित्य सिंधिया से भी मुलाकात की थी। हालांकि खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में आकर खुश नहीं बताए जाते, फिर भी सचिन पायलट ने ज्योतिरादित्य सिंधिया से मुलाकात की, जिसके यह मायने लगाए जा रहे हैं कि सचिन पायलट कांग्रेस छोड़ सकते हैं। इधर सूत्रों ने दावा किया है कि सचिन पायलट अगर कांग्रेस छोड़ भी देंगे तो वह भाजपा में शामिल नहीं होंगे वह अपना तीसरा मोर्चा बनाएंगे।

नाराजगी से खड़ा हुआ कांग्रेस में बखेड़ा 

लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार इस तरह का कोई भी कदम सचिन पायलट के लिए उचित नहीं होगा हालांकि सचिन पायलट की नाराजगी का कारण का भी उन्होंने बयान देकर साफ कर दिया है कि "मंत्री होने के बावजूद विभाग के किसी विज्ञापन पर उनके फोटो नहीं लगते,  किसी भी ट्रांसफर में उनसे इजाजत नहीं ली जाती, किसी भी तरह के नियुक्तियां 50% उनके कोटे से होनी चाहिए लेकिन उन्हें इसमें भी तवज्जो नहीं मिलती" इसलिए वह प्रदेश की गहलोत सरकार से नाराज हैं। 
बहरहाल सचिन पायलट को पार्टी की तरफ से कड़ा संदेश भी दिया गया है और उन्हें फिर से पार्टी में आने के लिए समय भी दिया गया है रणदीप सुरजेवाला ने जयपुर में एक प्रेस वार्ता कर पायलट को पार्टी की ओर से यह संदेश दिया है कि विधायक दल की बैठक में शामिल होने के लिए वह अपना समय बता दें कब तक पायलट बैठक में शामिल हो सकते हैं यह बताएं, सुरजेवाला ने विपक्षियों को भी यह साफ कर दिया है कि पार्टी में नाराजगी जरूर है लेकिन उसमें ना तो फूट पड़ी है और ना ही पार्टी को तोड़ा जा सकता है, यानी गहलोत सरकार को अस्थिर करना नामुमकिन है। पार्टी ने दावा किया है कि गहलोत सरकार के पास फिलहाल बहुमत का आंकड़ा यानी 102 विधायक मौजूद हैं जिसके चलते उनकी सरकार को किसी भी तरह से अस्थिर नहीं किया जा सकता है। 

गहलोत से सीख लेने की नसीहत

कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने तो यहां तक कह दिया है कि सचिन पायलट को गहलोत से अनुभव लेना चाहिए मुख्यमंत्री पद के कार्यों को और जिम्मेदारियों को समझना चाहिए किस तरह से प्रदेश को अशोक गहलोत ने दो बार मुख्यमंत्री बने रहते हुए संभाला है और तीसरी बार भी संभाल रहे हैं इसकी सीख लेनी चाहिए, उसके बाद जब भी मौका आए खुद गहलोत उन्हें अपना ताज सौंपकर वह सेंट्रल की राजनीति में चले जाएंगे। ऐसे में सचिन पायलट को धैर्य रखते हुए उचित वक्त का इंतजार करना चाहिए यही उनके लिए उपयुक्त होगा। इस समय पार्टी में फूट जैसी बातें उनके करियर पर भी बहुत बड़ा सवालिया निशान लगा सकती हैं। 

पीसीसी से हटाए पायलट के पोस्टर

बहरहाल सचिन पायलट का कोई जवाब अभी तक नहीं आया है कि वह कब तक लौटेंगे, और पार्टी ने भी उन पर कार्यवाही करते हुए पीसीसी से उनके पोस्टर और बैनर हटा दिए हैं। लेकिन यह बात तो तय है कि प्रदेश में अशोक गहलोत सरकार को हिलाना नामुमकिन है। लोग अशोक गहलोत को पसंद करते हैं क्योंकि गहलोत प्रदेश हित में काम करते हैं।  उनके कार्य को जब खुद प्रधानमंत्री मोदी तक ने सराहा है तो फिर उनके काम पर संशय नहीं किया जा सकता क्योंकि कभी भी कोई प्रतिद्वंद्वी अपने विपक्षी पार्टी के मुख्यमंत्री की तारीफ तभी करता है जब उसे उस मुख्यमंत्री में कोई योग्यता नजर आए और अशोक गहलोत की योग्यता किसी से छिपी नहीं है। फिलहाल जयपुर में रणदीप सुरजेवाला, अविनाश पांडे और केसी वेणुगोपाल मौजूद हैं जो कि प्रदेश की स्थिति को संभालने के लिए आलाकमान की तरफ से दिल्ली से जयपुर भेजे गए हैं। सूत्रों की माने तो सचिन पायलट भी अपनी नाराजगी दूर कर जल्द ही फिर से पार्टी में शामिल हो जाएंगे।


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