वाह भई वाह! नाम है सिद्धू...

- क्या खत्म हुआ नवजोत सिंह सिद्धू का राजनीतिक वनवास ?

- किससे खत्म होंगे मतभेद? आखिर किस करवट बैठेगा सिद्धू के राजनीतिक करियर का ऊंट?



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जस्ट टुडे

जयपुर। पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह से मतभेद के चलते पिछले 1 वर्ष से सिद्धू का राजनीतिक करियर हाशिए पर चल रहा है। जुलाई 2019 में पंजाब के मंत्री पद से इस्तीफे के बाद सिद्धू को इसकी बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ी है, क्योंकि सिद्धू का राजनीतिक करियर लगभग खत्म सा माना जा रहा था। वो केवल एक एमएलए कि हेसियत से ही कांग्रेस के साथ जुड़े हुए हैं,  लेकिन सिद्धू सोशल मीडिया पर कहीं-कहीं अपनी पोस्टों के जरिए अपने राजनीतिक करियर को बचाने के प्रयास में लगे रहे। अब एक बार फिर आम आदमी पार्टी में शामिल होने की अटकलों से उनके राजनीतिक करियर के पटरी पर आने को बल मिला है।  पहले भाजपा के साथ फिर कांग्रेस और अब आप के साथ सिद्धू अपनी "तीसरी" राजनीतिक पारी खेलने की तैयारी में है।  इसके लिए आप पार्टी के पुराने "वफादार" और "लाइजनर" प्रशांत किशोर कोशिशों में जुटे हैं।  माना जा रहा है कि पीके एक बार फिर सिद्धू और केजरीवाल के बीच सेतु का काम रहे हैं और सिद्धू ने भी पीके को अपनी मंशायें जता दी हैं। 


हाशिए पर सिद्धू, डूबते को झाड़ू का सहारा 


भाजपा से अलग होकर 2017 में सिद्धू के आप पार्टी में शामिल होने के चर्चे चली थी और केजरीवाल के साथ सिद्धू की बैठकें भी हुई थी लेकिन पंजाब में आप की सत्ता आने पर मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर केजरीवाल से सहमति नहीं मिलने के चलते उन्होंने आनन-फानन में कांग्रेस का दामन थाम लिया था। जिसे उन्होंने घर वापसी का नाम भी दिया था। कांग्रेस में शामिल होने के बाद राहुल और प्रियंका गांधी को सीढ़ी बनाकर सिद्धू पंजाब में सत्ता हथियाना चाहते थे लेकिन उनका ये सपना पूरा न हो सका। राहुल और प्रियंका से अपेक्षित लाभ या यूं कहें कि कैप्टन के विरुद्ध खुद को स्थापित न कर पाने के चलते उन्होंने 2019 में मंत्री पद से इस्तीफा देकर कांग्रेस में खुद को अलग थलग कर लिया था। फिलहाल लगभग 1 साल से "राजनीतिक वनवास" काट रहे सिद्धू के जरिए आप पार्टी ने पंजाब में अपनी पकड़  बनाने के मकसद से उन्हें पार्टी में शामिल करने के प्रयास तेज कर दिए हैं।


आप बना सकती है सीएम उम्मीदवार


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पंजाब सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह और सिद्धू के मतभेद किसी से छिपे नहीं है, 2022 में पंजाब में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आप पार्टी फिर से सक्रिय हो गई है।  इस बार केजरीवाल शायद पंजाब में कोई रिस्क नहीं लेना चाहते, तभी तो उन्होंने पीके को सिद्धू के पीछे लगा रखा है।  सूत्रों के अनुसार पीके की सिद्धू से कई बार फोन पर बात भी हो चुकी है और अब सौदेबाजी के बाद सिद्धू आम आदमी पार्टी में शामिल हो जाएंगे।  सूत्र यह भी बताते हैं कि सिद्धू इस बार फिर से केजरीवाल से मुख्यमंत्री पद की मांग करेंगे लेकिन इस बार आप पार्टी शायद खुद ही उन्हें पंजाब में सीएम का उम्मीदवार बनाना चाहती है।  इधर पंजाब में आप के प्रभारी जनरेल सिंह ने भी सिद्धू के पार्टी में शामिल होने के संकेत दिए हैं जनरल सिंह ने कहा है कि जो लोग ईमानदार इरादों के साथ पार्टी में आना चाहें, उनका स्वागत है।
       दिल्ली के राजनीतिक हलकों में यह चर्चा है कि पीके गुप्त रूप से सिद्धू को मनाने में जुटे हैं, वहीं से सिद्धू भी अपने राजनीतिक वनवास को खत्म करने की पूरी तैयारी में है। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आम आदमी पार्टी में शामिल होकर सिद्धू के लिए सक्रिय राजनीति में शामिल होने और खुद का कद बढ़ाने का शायद यह अंतिम अवसर है।  क्योंकि 2022 के चुनाव के बाद फिर 5 साल का ब्रेक लग जाएगा। इसलिए सिद्धू भी इस बार मौका नहीं गवाना चाहिए और फिर 5 साल राजनीति से  दूरी का मतलब क्या होता है ये दुनिया जानती है।


कांग्रेस में बढ़ी बेचैनी


इधर सिद्धू के आप में जाने की खबरों को लेकर कांग्रेस में भी बेचैनी देखी जा रही है। कांग्रेस को लगता है कि सिद्धू के आप में शामिल होने से पंजाब में कांग्रेस को काफी नुकसान हो सकता है। वहीं पीएम के खिलाफ सोनिया की अपील को नजरअंदाज कर सिद्धू अपनी  नाराजगी जाहिर कर चुके हैं।  गौरतलब है कि सोनिया ने अपील की थी कि गरीबों के खाते में पैसे डालने के कांग्रेस के अभियान में पीएम के खिलाफ वो भी कांग्रेस का साथ दें, वो भी सोशल मीडिया पर लिखकर पीएम पर दबाव बनाने में कांग्रेस के साथ रहें लेकिन सिद्धू ने ऐसा नहीं किया।  हालांकि सिद्धू ने अपने यूट्यूब चैनल "जीतेगा पंजाब" पर एक वीडियो डाला है जिसमें उनके साथ सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी की फोटो उन्होंने साझा की है जो उनके मन में कांग्रेस के प्रति कहीं ना कहीं श्रद्धा को भी दर्शाती है। 


भाजपा का भी हो सकता है तुरुप का पत्ता


इधर दूसरी ओर अति महत्वाकांक्षी सिद्धू के पास एक और विकल्प खुलता नजर आ रहा है पंजाब में भाजपा और अकाली दल के बीच खाई बढ़ती जा रही है अगर भाजपा ने 2022 में अकाली दल से अलग होकर पंजाब में विधानसभा चुनाव लड़ा तो भाजपा के लिए नवजोत सिंह सिद्धू "तुरुप का पत्ता" साबित हो सकते हैं,  क्योंकि कहीं ना कहीं अभी भी पंजाब में सिद्धू की राजनीतिक चवन्नी चल रही है। बहरहाल सिद्धू की बढ़ती महत्वाकांक्षा उन्हें कहां ले जाएगी? इसका जवाब तो वक्त ही दे सकता है। लेकिन जानकारों की मानें तो यह बात तो तय है कि अगर सिद्धू कांग्रेस छोड़ भाजपा या आप में शामिल हुए तो उनका पंजाब का मुख्यमंत्री बनना लगभग तय है।


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