प्रदेश में 'हाथ' तंग...कमल भी नहीं एक संग

राज्यसभा चुनाव: राजस्थान में भाजपा के लिए गहलोत सरकार में मुश्किल है सेंधमारी



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जस्ट टुडे
जयपुर। राज्यसभा चुनाव को लेकर प्रदेश में सियासी घमासान मचा हुआ है। भाजपा पर हॉर्स ट्रेडिंग का आरोप लगाने के बाद बुधवार शाम को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने विधायकों की दिल्ली रोड स्थित होटल में बाड़ाबंदी कर दी। 'सियासी गुरु' प्रदेश की इस राजनीतिक हलचल का गणित लगाने लग गए हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो मध्यप्रदेश और गुजरात की कहानी राजस्थान में दोहराना भाजपा के लिए लगभग मुश्किल है। क्योंकि, राजनीति के हिसाब से देखें तो गहलोत जैसा कोई दूसरा महारथी राजस्थान में नहीं है। नेता के रूप में भी वे लोगों के करीब हैं। उनकी छवि भी अभी तक बेदाग रही है। सबसे अहम बात फिलहाल उनके विरोधी भी इतनी राजनीतिक ताकत में नहीं है। मध्यप्रदेश में महाराज यानी ज्योतिरादित्य को राजनीतिक ताकत विरासत में मिली। कमलनाथ और दिग्विजय की जोड़ी से कई विधायक और जनता भी खफा थी। इसी बात का फायदा भाजपा को मिला। गुजरात में कांग्रेस के पास कोई ताकतवर नेता नहीं है। राजस्थान में भाजपा के लिए ऐसी आदर्श स्थितियां फिलहाल नहीं है। 

भाजपा भी नहीं एकजुट



राजनीतिक समीकरण के हिसाब से देखा जाए तो भी फिलहाल कांग्रेस में टूट होती नहीं दिख रही है। क्योंकि, अभी मंत्रिमंडल का विस्तार बाकी है, बहुत सारी राजनीतिक नियुक्तियां शेष है। ऐसे में कांग्रेस सहित कई निर्दलीय विधायकों को उम्मीद है कि गहलोत उनका ध्यान रखेंगे। ऐसे में वे इस्तीफा देकर या गुट बदलकर अपनी छवि को धूमिल नहीं करना चाहते हैं। क्योंकि, इस्तीफा देने से विरोधी उन पर सत्ता और धन लोलुप होने का आरोप लगाएंगे। वहीं जनता में भी छवि पर विपरीत असर पड़ता है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यदि किसी विधायक को बिना कुछ प्रपंच किए सत्ता सुख मिलने का अवसर हो तो फिर वह शॉर्ट कट को क्यों अपनाएगा? राजनीति की समझ रखने वाले जानते हैं कि प्रदेश भाजपा भी गुटों में बंटी हुई है, ऐसे में उनके लिए गहलोत सरकार में सेंधमारी करना आसान नहीं दिख रहा है।


विश्लेषकों की युवाओं को नसीहत


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कई जानकारों का कहना है कि भाजपा की यह कोशिश कामयाब नहीं होगी। ऐेसे में प्रदेश ही नहीं बल्कि दिल्ली दरबार में भी गहलोत का कद और भी बढ़ेगा, जिसका फायदा उन्हें विरोधियों से निपटने में सहायक सिद्ध होगा। राजनीति में भविष्य संवारने वाली युवा पीढ़ी को इन विश्लेषकों ने सलाह दी है कि वे गहलोत को 'राजनीतिक गुरु' बना लें तो बेहतर होगा। इससे उनका राजनीतिक कॅरियर प्रभावशाली बनेगा। 


अगले विधानसभा चुनाव में गहलोत किंगमेकर संभव


सियासी जानकारों का कहना है कि गहलोत इस कार्यकाल के बाद खुद ही केन्द्र की राजनीति में चले जाएं। लेकिन, इससे पहले अशोक गहलोत राज्य की बागड़ोर सुरक्षित हाथों में सौंपना चाहेंगे। क्योंकि, प्रदेश में कांग्रेस को गहलोत ने जिस तरीके से सींचा है, खड़ा किया है, अपने बाद उसे यूं ही उजाड़ नहीं होने देंगे। जानकारों का कहना है कि अगले विधानसभा चुनावों में गहलोत की भूमिका किंगमेकर की हो सकती है। गहलोत किसी युवा नेता को सीएम पद का उम्मीदवार बनाने की घोषणा कर प्रदेश की राजनीति को अलविदा कह सकते हैं। ऐसे में प्रदेश के युवा नेताओं के पास गहलोत का उत्तराधिकारी बनने का सुनहरा मौका है। हालांकि, गहलोत पुत्र वैभव भी राजनीतिक पिच पर स्वयं को धुरंधर साबित करने में लगे हुए हैं। लेकिन, गहलोत का मानना है कि मंत्री पुत्र होना ही राजनीतिक योग्यता नहीं है। ऐसे में जो अपनी राजनीतिक योग्यता साबित करेगा, वहीं अगला मुख्यमंत्री का दावेदार होगा। इस हिसाब से  'मुख्यमंत्री के ताजÓ की प्रतियोगिता सभी के लिए खुली हुई है, जो योग्य होगा, ताज उसी का होगा। 


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