बच्चों में इन लक्षणों को ना करें अनदेखा, हो सकता है ब्रेन कैंसर

वर्ल्ड ब्रेन ट्यूमर डे पर जस्ट टुडे विशेष (8 जून )



जस्ट टुडे

जयपुर। बच्चों में ब्लड कैंसर के बाद सर्वाधिक होने वाला कैंसर ब्रेन ट्यूमर देश में तेजी से बढ़ता जा रहा है। ये कहना है भगवान महावीर कैंसर हॉस्पिटल एवं रिसर्च सेंटर, जयपुर के न्यूरो ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. नितिन द्विवेदी का। 8 जून वर्ल्ड ब्रेन ट्यूमर डे के मौके पर डाॅ. द्विवेदी ने बताया कि इस बीमारी के लक्षणों को अनदेखा करना हजारों बच्चों के अकाल मौत का कारण बन रहा है। उन्होंने बताया कि इसके लक्षणों में तेज या लगातार रहने वाला सिरदर्द, चलने में परेशानी, चक्कर आना, उल्टी या मतली आना, बोलने और समझने में परेशानी या सुध-बुध खोना जैसे लक्षण शामिल हैं। ऐसे में कई बार मरीज के परिजन अंधविश्वास के चक्कर में पड़ जाते है और इससे मरीज का समय पर इलाज शुरू नहीं नहीं हो पाता है।


...तो रोगी को बचाना संभव



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उन्होंने बताया कि मस्तिष्क में जब असामान्य कोशिकाएं विकसित होने लगती है तो ब्रेन ट्यूमर का रूप ले लेती हैं। कोशिकाओं के विकास की गति ट्यूमर के प्रकार के अनुसार अलग-अलग होती है, लेकिन इस दौरान कई लक्षण व्यक्ति में नजर आते है। इन लक्षणों को अगर गंभीरता से लेकर समय पर चिकित्सक से सलाह ली जाए तो शुरूआती अवस्था में इसकी पहचान कर रोगी को बचाना संभव हो पाता है। जीवनशैली में आए परिवर्तन की वजह से ब्रेन ट्यूमर के अहम लक्षण सरदर्द और याददाश्त का कमजोर होना जीवनशैली का हिस्सा बनते जा रहे है। आज के समय में ब्रेन टयूमर के उपचार में कई नवीन तकनीक आ रही हैं, इसके बावजूद रोग की पहचान समय पर ना होने के कारण रोगी की मृत्युदर भी तेजी से बढ़ती जा रही है।


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युवाओं में बढती परेशानी 


50 वर्ष से ज्यादा की उम्र के सामने आने वाला ब्रेन ट्यूमर अब युवा अवस्था में भी मे तेजी से सामने आ रहा है। 30 से 40 की उम्र में भी हजारों रोगी इसका उपचार ले रहे है। छोटी उम्र में तेजी से बढ़ते मामलों को लेकर मेडिकल साइंस में कई रिसर्च हुई हैं, लेकिन अभी तक इसके कारणों का पता नही लग पाया है। कई शोध में पाया गया है कि मोबाइल का अधिक उपयोग और रेडिएशन एक्सपोजर के कारण मस्तिष्क पर कई नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जिससे व्यक्ति के व्यवहार में कई तरह के परिवर्तन सामने आते है। 


80 फीसदी रोगी समय पर नहीं लेते उपचार 


ब्रेन ट्यूमर के लक्षणों की अनदेखी और समय पर पहचान ना होने के कारण 80 फीसदी से ज्यादा रोगी ट्यूमर के पूरी तरह से बढ़ जाने के बाद न्यूरो एक्सपर्ट के पास आते हैं।


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