वतन से दूर...फिर भी वही नूर

जस्ट टुडे
पोर्ट ब्लेयर। अंग्रेजों के जमाने में काले पानी की सजा के रूप में विख्यात रहा पोर्ट ब्लेयर यूं तो भारत का अभिन्न अंग है, लेकिन, चारों तरफ से समुद्र से घिरा होने के चलते, वह देश से दूर भी लगता है। चूंकि, क्रांतिकारियों के खून का कतरा अब वहां की माटी बन गया है। उस माटी में जब तिरंगा लहराता है तो लगता है मानो वीर शहीदों को आजादी का गीत सुना रहा हो। क्रांतिकारियों के लहू से पवित्र हुई वहां की धरती पर पहुंचते ही शरीर में नई ऊर्जा का संचार होने लगता है। भले ही वहां आधुनिक युग की सारी भौतिक सुख-सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन, फिर भी वहां रहने को मन करता है। 

तीर्थ से कम नहीं सेल्युलर जेल


यूं तो वहां घूमने को काफी जगह हैं, लेकिन, वहां की सेल्युलर जेल में गजब का आकर्षण है। जेल होते हुए भी हर किसी के पैर वहां की ओर दौड़ पड़ते हैं। सेल्युलर जेल ब्रिटिश राज्य की बर्बरतापूर्ण अनकही यातनाओं की स्मृति और उसके विरोध में निर्भीक क्रान्तिकारियों की साहसिक अवज्ञा का मूक साक्षी कारागार है। इसे यह नाम 'सेल्युलर जेल' इसकी विशिष्ट 13.6* 7.6 माप की 698 कालकोठरियों के अनुरूप दिया गया है। इसका निर्माण अक्टूबर 1896 को शुरू होकर सन् 1906 में 5,17,352 रुपए की अनुमानित लागत से पूरा हुआ। वीर सावरकर और भगतसिंह के साथी रहे महावीर सिंह सहित हजारों क्रांतिकारियों को वहां पर असहनीय यातनाएं दी गईं। इसलिए भारतीयों के लिए वह जेल किसी तीर्थ स्थान से कम नहीं है। स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के सम्मानार्थ 'सेल्युलर जेल' को भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री मोराराजी देसाई के कर कमलों द्वारा 11 फरवरी 1979 को राष्ट्र को समर्पित किया गया। यह राष्ट्रीय स्मारक भारत के गौरवशाली इतिहास का ज्वलंत प्रतीक है।

एशिया का सर्वोत्तम बीच राधा नगर


अंडमान निकोबार में यंू तो 572 द्वीप हैं। लेकिन, इनमें से तीन द्वीप बहुत मशहूर हैं। इनमें हैवलोक द्वीप सबसे बड़ा है। इसे अब स्वराज द्वीप के नाम से जाना जाता है। स्वराज द्वीप के कई निवासी सन् 1971 के बांग्लादेश स्वाधीनता युद्ध के दौरान आए शरणार्थी और उनके वंशज हैं, जिन्हें भारत सरकार ने यहां बसाया था। इस द्वीप पर पांच गांव है- गोविन्दा नगर, विजय नगर, श्याम नगर, कृष्ण नगर और राधा नगर। यहां के तट विश्वप्रसिद्ध हैं। टाइम पत्रिका ने 2004 में छपे एक अंक में राधा नगर बीच को एशिया का सर्वोत्तम बीच घोषित किया था। इस बीच पर गंदगी का नामो-निशान नहीं है। रोस द्वीप, जिसे अब नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और नील द्वीप, जिसे अब शहीद द्वीप के नाम से जाना जाता है, को देखने दूर-दूर से सैलानी आते हैं। 

26 तारीख की काली छाप


पोर्ट ब्लेयर में 26 तारीख लोगों में मन में दहशत पैदा करती है। इस तारीख की अंडमान-निकोबार के पर्यटन पर काली छाप है। पर्यटन से जुड़े जानकारों ने बताया कि 26 दिसम्बर 2004 को अंडमान में सुनामी ने कहर बरपाया था। सुनामी के कहर की चपेट में सर्वाधिक कैमलेल वे, निकोबार, तराशा, नानकोरी और कच्छाल क्षेत्र आया। इन जगहों पर बहुत जनहानि हुई। उनकी याद में पोर्ट ब्लेयर पर सुनामी स्मारक भी बना हुआ है। इसके बाद फिर 26 तारीख को कहर बरपा। 26 जनवरी 2009 में समुद्र में बोट हादसा हो गया और करीब 21 लोग काल के ग्रास में समा गए। ये सभी लोग तमिलनाडु के थे। उसके बाद स्थानीय प्रशासन ने पर्यटकों की सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त कर दिए। अब नियमों से खिलवाड़ करने वाले ट्रेवल एण्ड टूरिज्म वालों पर सख्त कार्रवाई की जाती है।


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