...तो जयपुर का गुरुग्राम होता सांगानेर

जिम्मेदारों के गैर जिम्मेदारना रवैये की वजह से रंगाई-छपाई नहीं बन सकी इण्डस्ट्री


लेशिष जैन @ जस्ट टुडे
सांगानेर। रंगाई-छपाई के लिए दुनिया में मशहूर सांगानेर वर्तमान में अपनी इस पहचान को बचाने की जंग लड़ रहा है। करीब 3000 करोड़ का सालाना कारोबार होने के बाद भी छपाई फैक्ट्रियां अपनी अमिट 'छापÓ नहीं छोड़ सकी हैं। जयपुर के आर्थिक विकास की धुरी होने के बावजूद अभी तक सांगानेर 'आर्थिक हबÓ नहीं बन पाया है। रंगाई-छपाई एसोशिएशन में ऊंचे पदों पर वर्षों से बैठे लोगों की लापरवाही की वजह से सांगानेर का यह सब नुकसान हुआ है। यदि एसोशिएशन में ऊंचे पदों पर वर्षों तक बैठे लोग समय पर जाग जाते तो रंगाई-छपाई फैक्ट्रियां अभी तक इण्डस्ट्री के रूप में तब्दील हो गईं होतीं। अगर ऐसा हो जाता तो सांगानेर भी हरियाणा के गुरुग्राम की तरह जयपुर का वित्तीय और औद्योगिक केन्द्र बन जाता। इसे देखते हुए यहां पर अन्य कई इण्डस्ट्रीज और भी आतीं। ऐसे में सांगानेर के विकास को पंख लग जाते और यहां के स्थानीय निवासियों को रोजगार भी मिलता। जस्ट टुडे ने जानी आखिर क्या वजह रहीं, जिससे रंगाई-छपाई अभी तक इण्डस्ट्री नहीं बन पाईं। आखिर किन जिम्मेदारों की लापरवाही का खमियाजा इस व्यवसाय से जुड़े लोग अभी तक उठाने को मजबूर हैं।


तत्कालीन सीएम ने दे दी थी रजामंदी


इस व्यवसाय से जुड़े लोगों ने बताया कि करीब साढ़े तीन वर्ष पहले तत्कालीन सीएम वसुंधरा राजे ने रंगाई-छपाई की पूरी फैक्ट्रियों का लैंड यूज परिवर्तन करके इण्डस्ट्रियल में कन्वर्जन करवाने की रजामंदी दे दी थी। उन्होंने उसी समय अपने निजी सचिव सीनियर आईएएस तन्मय शर्मा को मौखिक आदेश भी दे दिए थे। तत्कालीन सीएम राजे के इस निर्णय से सभी व्यवसायी भी खुश हुए थे। यानी कुंआ खुद प्यासों की प्यास बुझाने आया था। लेकिन, फिर भी एसोसिएशन के जिम्मेदार पदाधिकारियों के गैर जिम्मेदारना रैवये की वजह से यह कार्य नहीं हो सका था। जिम्मेदार पदाधिकारियों ने इसमें कोई रुचि ही नहीं दिखाई। ऐसे में यह व्यवसाय इण्डस्ट्री का रूप नहीं ले सका। इस वजह से बार-बार इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को प्रदूषण नियंत्रण मंडल की कार्रवाई का सामना करना पड़ता है। 


करोड़ों की फैक्ट्री फिर भी नहीं मिलता बैंक लोन
इस व्यवसाय से वर्षों तक जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि सांगानेर की सभी फैक्ट्रियां एग्रीकल्चर और सोसायटी प्लॉट पर बनी हुई हैं। ऐसे में करोड़ों रुपए की फैक्ट्री होने के बाद भी उनके मालिकों को किसी बैंक से लोन नहीं मिल पाता है। लोन नहीं 
मिलने की वजह से वे अपने व्यवसाय को आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं। ऐसे में कोई फैक्ट्री मालिक किसी साहूकार के कर्ज के तले दबा हुआ है तो किसी ने फैक्ट्री का दायरा ही सीमित कर लिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि फैक्ट्रियों का इण्डस्ट्रियल कन्वर्जन हो जाता तो इन्हें तुरन्त बैंक से लोन मिल जाता और बिना किसी रुकावट के ये अपने बिजनेस को बढ़ा पाते।
 
मुहाना रोड की फैक्ट्रियों को इसलिए वरीयता 
जानकारों ने बताया कि केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने फरवरी 2019 में सीईटीपी प्लांट का उद्घाटन किया था। उस समय करीब 300 फैक्ट्रियां सीईटीपी प्लांट से जुड़ गईं थीं। लेकिन, अभी तक इन 300 फैक्ट्रियों का पानी प्लांट में नहीं पहुंच रहा है। खास बात यह है कि सीईटीपी प्लांट से जुड़ चुकीं ये सभी 300 फैक्ट्रियां मुहाना रोड पर स्थित हैं। जानकारों ने बताया कि रंगाई-छपाई एसोशिएशन में ऊंचे पदों पर वर्षों से बैठे लोगों की फैक्ट्रियां भी इनमें शामिल हैं। जबकि सीईटीपी प्लांट की पाइप लाइन खत्री नगर से शुरू होती है, वहां की एक भी फैक्ट्री अभी तक सीईटीपी प्लांट से नहीं जुड़ सकी हैं।


तत्कालीन सीएम राजे का आभार
सांगानेर में रंगाई-छपाई उद्योग की वर्षों से पहचान है। इस उद्योग से जिस तरह से पानी और पर्यावरण प्रदूषित हो रहा था। उसे देखते हुए तत्कालीन सीएम वसुंधरा राजे से सीईटीपी प्लांट बनाने का आग्रह किया गया था। सीएम राजे को बताया गया कि सीईटीपी प्लांट नहीं होने से आए दिन प्रदूषण नियंत्रण मंडल की ओर से कार्रवाई की जाती है। ऐसे में इस व्यवसाय पर तलवार लटकी हुई है। तब एसईपीडी का गठन करके सीईटीपी प्लांट बनाने की कवायद की। दिल्ली में तत्कालीन कपड़ा मंत्री संतोष गंगवार से मिलकर 160 करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट स्वीकृत करवाया। तत्कालीन सीएम राजे का आभार प्रकट करता हूं कि उन्होंने सांगानेर को नई सौगात दी। जल्द ही प्लांट से 900 इकाइयां जुड़ेंगी। इस उद्योग की विसंगतियों को दूर करने का प्रयास किया जाएगा। - रामचरण बोहरा, जयपुर सांसद

मुहाना रोड पर मेरी भी फैक्ट्री
लैंड कन्वर्जन की तत्कालीन सीएम वसुंधरा राजे ने पहल की थी। हमने भी कोशिश की, लेकिन, फिर सरकार ही चेंज हो गई। सीईटीपी प्लांट बनने के बाद सभी को पॉल्यूशन बोर्ड से हरी झण्डी मिल जाएगी और बैंक से लोन मिलने लगेंगे। जो फैक्ट्रियां ग्रेविटी में थीं, उन्हीं को सबसे पहले प्लांट से जोड़ा गया था। मुहाना रोड पर मेरी भी फैक्ट्री है, वह भी प्लांट से जुड़ चुकी है। - रविन्द्र जिंदगर, पूर्व सचिव 


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