कोरोना पर करेगा वार...आईआईटी छात्रों का 'रुहदार'

आईआईटी बॉम्बे के छात्रों ने बनाया वेंटीलेटर...कीमत सिर्फ 10,000...कोरोना से लडऩे में कारगर
डिजाइन इवोवेशन सेंटर, आईयूएसटी पुलवामा ने किया डिजाइन 



जस्ट टुडे
जयपुर। जब कोरोना महामारी का टीका दुनिया में किसी के पास नहीं है, ऐसे में लोगों की जीवन रक्षा करने के  लिए वेटिंलेटर की अहम भूमिका हो जाती है। स्वास्थ्य मंत्रालय की मानें तो संक्रमित होने वालों में करीब 80 फीसदी मामूली रूप से गंभीर होंगे। करीब 15 फीसदी को ऑक्सीजन की जरूरत होगी, शेष 5 फीसदी संक्रमितों, जिनकी हालत नाजुक होगी, उन्हें वेंटीलेटर की आवश्यकता होगी। ऐसे में वेंटीलेटर चिकित्सा का प्रमुख अंग है, जो बीमार को श्वांस लेने में अहम भूमिका निभाता है। ऐसे में सरकार ने बाहर से तो वेंटीलेटर की आपूर्ति के ऑप्शन देखे ही, घरेलू निर्माण क्षमता बढ़ाने पर भी ध्यान दिया। ऐसे में घरेलू निर्माताओं को करीब 59000 से अधिक यूनिट्स के आदेश दिए जा चुके हैं।

इस टीम ने बनाया सस्ता वेंटीलेटर


आईआईटी बॉम्बे, एनआईटी श्रीनगर और इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (आईयूएसटी), अवंतीपोरा, पुलवामा, जम्मू और कश्मीर के इंजीनियरिंग छात्रों की एक टीम रचनात्मक व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है , जो वेंटिलेटर की आवश्यकता संबंधी समस्या को हल करने के लिए सामने आया। इस टीम ने स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सामग्रियों का उपयोग करते हुए कम लागत वाला वेंटिलेटर बनाया है। टीम ने इसको रूहदार वेंटिलेटर नाम दिया है। 

वेंटीलेटर का ऐसे हुआ जन्म 


प्रोजेक्ट हेड और आईआईटी बॉम्बे के इंडस्ट्रियल डिजाइन सेंटर के प्रथम वर्ष के छात्र जुल्कारनैन महामारी के कारण संस्थान बंद हो जाने पर अपने गृहनगर कश्मीर गए थे। महामारी बढऩे पर जमीनी स्थिति का पता चला तो उन्होंने मालूम हुआ कि कश्मीर घाटी में केवल 97 वेंटिलेटर हैं। उन्होंने महसूस किया कि इनकी आवश्यकता इससे कहीं अधिक थी और वेंटिलेटर्स की कमी कई लोगों के लिए प्रमुख चिंता बन गई थी।
इसलिए, ज़ुल्कारनैन ने आईयूएसटी, अवंतीपोरा के अपने दोस्तों पी. एस. शोएब, आसिफ शाह और शाहकार नेहवी और एनआईटी श्रीनगर के माजिद कौल के साथ मिलकर काम किया। आईयूएसटी के डिजाइन इनोवेशन सेंटर (डीआईसी) से सहायता लेते हुए टीम स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सामग्री का उपयोग करके कम लागत वाले वेंटिलेटर डिजाइन करने में सक्षम रही है। हालांकि, उनका प्रारंभिक उद्देश्य एक आजमाए गए और परीक्षण किए गए डिजाइन की ही प्रतिकृति तैयार करना था, लेकिन जब उन्होंने इस पर काम करना शुरू किया तो वेंटिलेटर का अपना डिजाइन विकसित कर लिया।

10,000 आई लागत, ज्यादा बनेंगे तो सस्ते पड़ेंगे


जुल्कारनैन कहते हैं, टीम के लिए इस प्रोटोटाइप की लागत लगभग 10,000 रुपए रही और जब हम बड़े पैमाने पर उत्पादन करेंगे, तो लागत इससे बहुत कम होगी। उन्होंने कहा कि जहां एक ओर अस्पतालों में उपयोग किए जाने वाले कीमती वेंटिलेटरों का दाम लाखों रुपए होता है, वहीं रूहदार आवश्यक कार्यात्मकता प्रदान करते हैं जो गंभीर रूप से बीमार कोविड-19 रोगी के जीवन को बचाने के लिए आवश्यक पर्याप्त श्वसन सहायता प्रदान कर सकते हैं। ज़ुल्कारनैन ने कहा, टीम अब प्रोटोटाइप का मेडिकल परीक्षण कराएगी। स्वीकृति मिलते ही इसका बड़े पैमाने पर निर्माण किया जाएगा। इसे लघु उद्योग द्वारा निर्माण किए जाने के लिए उत्तरदायी बनाए जाने का प्रयास है। टीम उत्पाद के लिए कोई रॉयल्टी नहीं वसूलेगी।


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