गरीबों के हक पर दबंगों का डाका... 40 कियोस्कों के कौन असली आका
रसूख का मामला: सांगा बाबा सर्किल के पास स्थित जमीन पर ना पार्क बना और ना ही आज तक खुले कियोस्क
जस्ट टुडे @ लेशिष जैन
सांगानेर। दुनियाभर में मशहूर सांगानेर अपने ही जनप्रतिनिधियों के गैर जिम्मेदाराना रवैये की वजह से वर्षों से उपेक्षित है। सभी सुख-सुविधाएं होते हुए भी यहां पर एक ऐसी कमी है, जो दाग बनकर इसकी खूबसूरती को कम कर रही है। वह कमी है, एक अदद पार्क की। सांगानेर और उसके आस-पास चारों तरफ पार्क नहीं है। ऐसे में स्वास्थ्य के प्रति सजग लोगों में निराशा व्याप्त है। ऐसा नहीं है कि यहां पर पार्क की जमीन नहीं है बल्कि मिलीभगत के चलते कुछ रसूखदार उस पार्क को ही चट कर गए। सांगानेर में सांगा बाबा सर्किल के पास स्थित जमीन भले ही पार्क के लिए आरक्षित हो, लेकिन उस पर कियोस्क बनाकर लाखों की जमीन को डम्पिंग जोन बना दिया गया। वैसे भी न्यायालय का आदेश है कि एक बार यदि किसी जमीन पर पार्क बनना घोषित हो जाए तो फिर उस पर दूसरा कोई निर्माण कार्य नहीं हो सकता है। उसके बाद भी पार्क की जमीन पर कियोस्क बनाकर ना केवल जनता की गाढ़ी कमाई पानी की तरह बहाई गई बल्कि उन कियोस्कों के आवंटन में भी मिलीभगत का खुला खेल चला। आखिर पार्क की जमीन पर कैसे बने कियोस्क? गरीबों के लिए बनाए गए कियोस्क पर असल में किनका है कब्जा? अभी कियोस्कों के वर्तमान हालात क्या हैं? पूरे मामले की सच्चाई उजागर करती जस्ट टुडे की रिपोर्ट।
यह है पूरा मामला
दरअसल, सांगा बाबा सर्किल के पास स्थित करीब 60 गज के भूखण्ड को पंचायत ने पार्क के रूप में छोड़ा था। उस भूखण्ड पर वर्ष 1973 से एक गरीब तबके के नवयुवक का मालिकाना हक था। वह वहां हजामत की दुकान लगाकर परिवार का पेट पाल रहा था। लेकिन, पालिका प्रशासन ने उस भूखण्ड पर पार्क विकसित करने के बहाने उसे अन्यत्र जगह देने का वादा करके उसे वहां से हटा दिया। उसकी दुकान को तुड़वा दिया गया और उसमें लगी करीब 5000 ईंटों का उपयोग पार्क में कर लिया। इसके बाद अगस्त 1974 को सार्वजनिक नीलामी की विज्ञप्ति जारी कर तत्कालीन पालिका प्रशासन ने इस जगह को नीलाम करने का प्रयास किया। तब इस नवयुवक ने न्यायालय की शरण लेकर स्थगन आदेश लिया। तब नीलामी कार्यवाही रूकी।
फिर नहीं मिला मालिकाना हक
फिर गरीब बेरोजगार युवक ने अपने मालिकाना हक की जमीन को आवंटन कराने के लिए भरसक प्रयास किए। तत्कालीन ग्राम पंचायत में नियमानुसार शुल्क जमा कराकर आवेदन किया एवं निरन्तर पालिका प्रशासन से अपने हक में आवंटन करने के लिए आग्रह करता रहा। लेकिन, भ्रष्ट अधिकारियों के चलते उसे सफलता नहीं मिली। इसके बाद करीब 60 गज के इस भूखण्ड को बिना सार्वजनिक सूचना एवं नीलामी के कौडियों के भाव विक्रय कर दिया गया।
बेरोजगारों का छीना हक
इसके बाद मुख्यमंत्री रोजगार के तहत इस भूखण्ड पर करीब 40 कियोस्क बनाए गए। नियमानुसार ये कियोस्क गरीब बेरोजगार व्यक्तियों को आवंटित होने चाहिए थे। लेकिन, यहां पर भी रसूखदारों की ही चली। गरीबों के लिए बनाए गए इन कियोस्कों को उन्होंने अपने नाम आवंटित करा लिया। हालांकि, इन कियोस्कों के असली मालिक कौन है, ये आज तक किसी को भी नहीं पता। क्योंकि, आवंटियों की सूचना कभी भी ना तो पालिका प्रशासन की ओर से दी गई और ना ही किसी ने कभी कियोस्क को खोला। आवंटन से लेकर वर्तमान में ये कियोस्क बंद ही हैं। सूत्रों का कहना है कि इनमें से कई कियोस्कों के मालिक पैसे वाले और रसूखदार व्यापारी हैं। उन्होंने पैसे और रुतबे का गलत फायदा उठाकर गरीबों के हक पर डाका मार लिया।
नहीं दी सूचना
इस पूरे प्रकरण के बाद सांगानेर निवासी एडवोकेट और समाज सेवी पुरुषोत्तम नागर ने तत्कालीन कलक्टर को पत्र के जरिए इस पूरे प्रकरण से अवगत कराया और इस मामले में दखल देने की मांग की। इतना ही नहीं उन्होंने इस मामले को लेकर सूचना का अधिकार कानून के तहत सूचना
भी मांगी। जिसमें उन्होंने कहा कि 40 कियोस्क के निर्माण पर नगर निगम की ओर से कितनी राशि व्यय की गई। 40 कियोस्क किन-किन व्यक्तियों को आवंटित किए गए। उन व्यक्तियों से निगम की ओर से कितना आवंटन शुल्क/किराया/कियोस्क के पेटे कितनी राशि ली गई। आवंटियों की सूची मय नाम-पता उपलब्ध कराई जाए। लेकिन, उन्हें ये सूचना नहीं दी गई।
यहा हो सकता है उपयोग
पुरुषोत्तम नागर ने बताया कि इस बेशकीमती जगह का उपयोग जनहित में हो। यदि अब वर्तमान परिस्थितियों और अधिक आबादी के हिसाब से इस पर पार्क नहीं बन सकता है तो इस पर सुलभ शौचालय, जलमंदिर, दो पहिया पार्किंग, बस स्टैण्ड शेल्टर जैसे कई जनहित के निर्माण कार्य कराए जा सकते हैं। इन पर बनाए गए कियोस्क कभी शुरू ही नहीं हुए। ये वर्षों से धूल फांक रहे हैं। समय के साथ ये जर्जर भी हो गए हैं। अंधेरा होते ही यहां पर असामाजिक तत्वों का जमावड़ा हो जाता है।
विधानसभा में भी गूंजा पार्क का मुद्दा
सांगानेर में पार्क का मुद्दा विधानसभा में भी गूंज चुका है। इस संदर्भ में पूछे गए एक सवाल के जवाब में तत्कालीन स्वायत्त शासन मंत्री राजेन्द्र चौधरी ने कहा था कि सांगानेर में शीघ्र ही पार्क बनाया जाएगा। उसके बाद ना जाने कितने स्थानीय जनप्रतिनिधि बदले ना जाने कितनी बार सरकारें बदली। नहीं बदली तो एक सांगानेर की किस्मत, जो तभी से एक पार्क के लिए बाट जोह रही है।