'बड्डी' के साथ भी कभी-कभी जरूरी है 'कबड्डी'

जस्ट टुडे
वॉशिंगटन। आप सभी ने बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन और अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म 'वक्त' तो देखी ही होगी। पिता-पुत्र के दोस्ताना सम्बंधों पर बनी इस फिल्म ने उन माता-पिता को सीख दी, जो अपने बच्चों की हर जिद को पूरा करने में उनका सहयोग करते हैं। फिल्म में अक्षय कुमार के लिए अमिताभ पिता से ज्यादा 'बड्डी' यानी दोस्त ज्यादा थे। अपने बेटे की हर जिद को वे एक अच्छे दोस्त की तरह पूरा करते थे। खास बात यह है कि इन दोनों के बीच पक रही खिचड़ी को फिल्म में अमिताभ की पत्नी बनी अभिनेत्री को भी नहीं पता चलता है। फिल्म में यू-टर्न तब आता है, जब अमिताभ को कैंसर हो जाता है। तब अपने बिगडैल बेटे को सुधारने के लिए  'बड्डी' ने अपना पिता वाला रूप दिखाया। उस फिल्म ने सबक दिया कि यदि माता-पिता 'बड्डी' बनकर साथ निभा सकते हैं, तो वही 'बड्डी' पिता बनकर सीधी राह भी दिखा सकते हैं। यानी 'बड्डी' के साथ कभी-कभी कबड्डी खेलना भी जरूरी होता है।

मां ने सिखाया जिद्दी बेटी को सबक


फ्लोरिडा में एक महिला ने अपनी छह साल की बेटी की जिद पर उसे ऐसा ही सबक सिखाया। दरअसल, हैली हैसेल की बेटी परी ने 'एलओएल' नामक ब्रॉण्ड के पेन्सिल बॉक्स की डिमाण्ड की। मां तो मां होती है, उसने अपनी बेटी की ख्वाहिश को पूरा करने के लिए उसने तमाम बाजारों की खाक छान मारी, लेकिन, उसे 'एलओएल' नामक ब्रॉण्ड का पेन्सिल बॉक्स नहीं मिला। हैली ने बेटी को सरप्राइज देने के लिए उससे मिलता-जुलता पेन्सिल बॉक्स लाकर दिया। बेटी परी ने कहा कि ऐसा पेन्सिल बॉक्स तो क्लास में हर किसी के पास है और उसने वह कूड़ेदान में फेंक दिया। अगर हैली की जगह कोई और मां होती तो शायद परिस्थिति के शांत होने का इंतजार करती। लेकिन, हैली ने ऐसा नहीं किया। उसने तुरन्त फैसला किया कि यदि उसकी बेटी को चीजों की कद्र नहीं है तो वह इसे किसी जरूरतमंद को दे देगी। इसलिए बेटी को सबक सिखाने के लिए उसने उस पेन्सिल बॉक्स पर 'परी पेन्सिल बॉक्स' लिख दिया। परी को अपनी गलती का अहसास हुआ तब तक उसने वह बॉक्स एक जरूरतमंद बच्चे को दे दिया। उसके बाद परी ने अपनी मां से खूब मिन्नतें की, उसी तरह का दूसरा पेन्सिल बॉक्स लाकर दें। लेकिन, मां ने सख्त लहजे में मना कर दिया और कहा कि अब पेन्सिल बॉक्स तब ही आएगा, जब आप पढ़ाई में अव्वल आओगी।


माता-पिता याद रखें यह सबक


हैली की तरह ही कई माता-पिता भी अपने बच्चों की कई जिदों को लाड-प्यार में पूरी कर देते हैं। लेकिन, बच्चों को ना तो उन चीजों की कद्र होती है और ना ही समझ। माता-पिता को भी यह समझना होगा कि बच्चों की जिद को पूरा नहीं करें। उन्हें सिखाए कि किसी भी चीज को पाना इतना आसान नहीं है, जितना बच्चों को लगता है। बच्चों को जब यह अहसास हो जाएगा तो वे माता-पिता की ओर से दिए गए प्रत्येक उपहार का सम्मान करेंगे।


जरूरतें पूरी करें...जिद नहीं


विशेषज्ञों का भी यही कहना है कि माता-पिता को अपने बच्चों की हर जिद पूरी नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से बच्चों में एक तो प्रत्येक चीज पर कब्जा जमाने की प्रवृत्ति जन्म ले लेती है। वहीं वह आसानी से मिली हुई चीजों की कद्र भी नहीं करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि माता-पिता को बच्चों की जरूरतें पूरी करनी चाहिए, जिद नहीं। साथ ही बच्चों के लिए टारगेट तय करें। मसलन: बच्चे से कहें कि यदि आप ऐसा करोगे तो आपको आपका मनपसंद खिलौना दिलाया जाएगा या फिर ड्रेस दिलाई जाएगी।  


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