केन्द्र से नहीं मिली राहत...रंगाई-छपाई इंडस्ट्री आहत

केन्द्र सरकार की हिस्सेदारी का पैसा नहीं मिलने से सांगानेर की पहचान रहे 300 साल पुराने रंगाई-छपाई व्यवसाय पर लटकी तलवार



लेशिष जैन
जस्ट टुडे
सांगानेर। विश्वभर में सांगानेर अपनी छपाई के लिए मशहूर है। करीब 300 साल पुरानी रंगाई-छपाई इंडस्ट्री सांगानेर सहित राजधानी जयपुर के आर्थिक विकास की प्रमुख धुरी है। करीब 3000 करोड़ रुपए की इस इंडस्ट्री से 3-4 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। अभी वर्तमान में सांगानेर में रंगाई-छपाई की 900 इंडस्ट्रीज हैं। लेकिन, करीब 19 इंडस्ट्री की लापरवाही के चलते इस रंगीन व्यवसाय पर कालिख पुत गई है। ये 19 इंडस्ट्री सारे नियम-कायदों को ताक पर रखकर द्रव्यवती नदी में प्रदूषित पानी छोड़ रही थीं।  प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने इन पर कार्रवाई करते हुए इन्हें बंद कर दिया है। साथ ही हाईकोर्ट ने भी पर्यावरण को नुकसान बताते हुए ऐसी इंडस्ट्रीज पर सख्त नाराजगी जाहिर की है।



इन 19 इंडस्ट्री की वजह से इस पूरी इंडस्ट्री पर अभी तलवार लटकी हुई है। वर्षों से इस रोजगार के जरिए अपना पेट पाल रहे व्यापारी परेशान हैं। जस्ट टुडे ने इस इंडस्ट्री से जुड़े लोगों से पूरे मामले की पड़ताल की। आखिर क्यों 19 इंडस्ट्री ही द्रव्यवती को प्रदूषित कर रही थीं? कॉमन एफिलेंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) अभी तक क्यों शुरू नहीं हो पाया है? इस इंडस्ट्री का आखिर क्या है दर्द? पूरे मामले की सच्चाई उजागर करती जस्ट टुडे की ग्राउण्ड रिपोर्ट।


केन्द्र की किश्त ने अटकाया कार्य


सांगानेर रंगाई-छपाई एसोसिएशन के प्रवक्ता और सांगानेर एनवीरो प्रोजेक्ट डवलपमेंट (एसईपीडी) के डायरेक्टर घनश्याम कूलवाल ने बताया कि सीईटीपी प्लान्ट केन्द्र सरकार, राज्य सरकार और रंगाई-छपाई इण्डस्ट्री मालिकों की ओर से तय हिस्सेदारी के तहत बनवाया जा रहा है। इस पर करीब 159 करोड़ रुपए खर्च होंगे। इसमें से सर्वाधिक 50 फीसदी हिस्सा केन्द्र सरकार की ओर से देना प्रस्तावित है। वहीं करीब 25-25 फीसदी पैसा राज्य सरकार और इंडस्ट्री मालिक के हिस्से का है। उन्होंने बताया कि इस हिस्सेदारी में से राज्य सरकार करीब 39.75 करोड़ रुपए और करीब 40 करोड़ रुपए इंडस्ट्री मालिक दे चुके हैं। केन्द्र की हिस्सेदारी में से प्रथम किश्त करीब 37.5 करोड़ रुपए भी आ चुके हैं। वहीं द्वितीय किश्त करीब 22.5 करोड़ रुपए अभी तक नहीं मिली है। कार्य के पूरा होने के दो साल बाद करीब 15 करोड़ रुपए केन्द्र की ओर से और मिलेंगे। इस सम्बंध में इंडस्ट्री मालिक अभी हाल ही में दिल्ली में केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से भी मिले थे। ईरानी ने कहा कि आपके मैनेजमेंट में कुछ लोग सही नहीं हैं। उनकी मेरे पास शिकायतें हैं, पहले उसे सही करो, फिर किश्त जारी की जाएगी। उन्होंने बताया कि इंडस्ट्री एसोसिएशन जल्द ही मैनेजमेंट को सही करेगी। वहीं सांसद रामचरण बोहरा ने आश्वासन दिया है कि लोकसभा का सत्र शुरू हो चुका है, इस दौरान आपको पैसा दिलवाया जाएगा। 


कम्पनी ने अपनी जिम्मेदारी इंडस्ट्री पर डाली
एसईपीडी के डायरेक्टर घनश्याम कूलवाल ने बताया कि सीईटीपी प्लांट को बनाने का ठेका अहमदाबाद की कम्पनी एडवेंट एनवीरो केयर को वर्ष 2016 में दिया गया था। इसे करीब वर्ष 2018 में पूरा करना था। लेकिन, तय सीमा से करीब डेढ़ साल ज्यादा होने के बाद भी सीईटीपी प्लांट अभी तक नहीं बना है। उन्होंने बताया कि सीईटीपी प्लांट की ठेका शर्तों के अनुसार केन्द्र की हिस्सेदारी का पैसा एडवेंट एनवीरो केयर को लाना था, लेकिन, उन्होंने अपनी जिम्मेदारी इंडस्ट्री मालिकों पर डाल दी और करीब 11 माह से कार्य बंद पड़ा है। हालांकि, कूलवाल ने बताया कि ठेका कम्पनी और एसईपीडी के बीच एक सहमति बनी है। इसके तहत कम्पनी को करीब तीन करोड़ रुपए दिए जाएंगे, जिससे संभवत: जल्द ही कार्य शुरू हो जाएगा।


30 किमी. तक बिछ चुकी पाइप लाइन


कूलवाल ने बताया कि सीईटीपी प्लांट का करीब 90 फीसदी कार्य हो चुका है। खुली जेल के पीछे खत्री नगर से जयपुर गेट, पालीवाल गार्डन, शिकारपुरा रोड, गोविन्दपुरा चौराहा, सायपुरा रोड, डिग्गी रोड और मुहाना रोड़ तक कुल 45 किमी. पाइप लाइन बिछानी थी। इसमें से गोविन्दपुरा चौराहे तक करीब 39 किमी. तक पाइप लाइन बिछ चुकी है। 


ईटीपी प्लांट नहीं होने से हुई कार्रवाई


रंगाई-छपाई की 19 इंडस्ट्री पर कार्रवाई के सवाल पर कूलवाल ने कहा कि इन इंडस्ट्री ने एफुलेंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) नहीं बना रखा था और गंदा पानी नाले में डाल रहे थे। उन्होंने बताया कि ईटीपी प्लांट पर करीब 2 लाख रुपए का खर्च आता है, इसमें गंदा पानी प्रारंभिक स्टेज पर फिल्टर हो जाता है। जयपुर गेट, शिकारपुरा रोड और गूलर के बंधे पर स्थित इन इंडस्ट्री को प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने शीघ्र ही ईटीपी प्लांट बनाने को कहा है। ये इंडस्ट्री अभी बंद पड़ी हैं। उन्होंने बताया कि सांगानेर में करीब 900 फैक्ट्रियां हैं और इनमें से 881 फैक्ट्रियों में ईटीपी प्लांट है।


पानी होगा फिल्टर, 5 करोड़ प्रतिवर्ष मेंटीनेंस पर 



उन्होंने बताया कि मुहाना मोड पर फिल्टर मशीन लग चुकी है। इसकी क्षमता 12.3 एमएलडी (करीब 1.23 करोड़ लीटर) है। चूंकि, पाइप लाइन अभी डलना बाकी है, ऐसे में यह मशीन अभी बंद है। कूलवाल ने बताया कि ईटीपी प्लांट में गंदा पानी प्रारंभिक तौर पर साफ होगा, वहां से यह 
पानी पाइप लाइन के जरिए फिल्टर मशीन में जाएगा और वहां पर पानी आरओ फिल्टर हो जाएगा। उन्होंने बताया कि सीईटीपी प्लांट के मेंटीनेंस पर प्रतिवर्ष करीब 5 करोड़ रुपए खर्च होंगे। 


ऐसे निकलेगा मेंटीनेंस खर्च



कूलवाल ने बताया कि एसईपीडी में करीब 900 सदस्य हैं। इन सभी से मेंटीनेंस के रूप में खर्च लिया जाएगा। इसके अलावा पानी फिल्टर के बाद जो वेस्ट बचेगी, उससे नमक बनेगा, जिसे बेचा जाएगा। नमक के बाद जो कचरा बचेगा, उसे सीमेंट फैक्ट्रियों को बेचा जाएगा। उन्होंने बताया कि 900 फैक्ट्रियों में रोजाना 1 करोड़ लीटर पानी खर्च हो रहा है। फिल्टर से करीब 90 फीसदी पानी फिर से यूज हो जाएगा। इस फिल्टर पानी को भी फैक्ट्रियों को बेचा जाएगा। इस तरह से मेंटीनेंस का पूरा खर्चा निकाला जाएगा।


3000 करोड़ की है इंडस्ट्री


कूलवाल ने बताया कि सीईटीपी प्लांट बनने से पानी बचेगा, पर्यावरण सुरक्षित होगा। उन्होंने बताया कि रंगाई-छपाई इंडस्ट्री का करीब 3000 करोड़ रुपए सालाना टर्नओवर है। यह सांगानेर के साथ ही राजधानी जयपुर के आर्थिक विकास की भी धुरी है। उन्होंने बताया कि सांगानेर, बापू बाजार, सीकर हाउस, दूल्हा हाउस, चौड़ा रास्ता के रजाई वाले, हवामहल और आमेर रोड के आस-पास के लोग, हैण्डीक्राफ्ट के व्यापारी, सीतापुरा इंडस्ट्री एरिया, रीको इण्डस्ट्री एरिया का व्यापार सीधे इस इंडस्ट्री से जुड़ा हुआ है।



एमओयू केन्द्र और एसोसिएशन के बीच



जिन फैक्ट्रियों ने ईटीपी प्लांट नहीं लगा रखे हैं, उन पर प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने कार्रवाई की है। हमारी कम्पनी का कार्य पाइप लाइन डालने और सीईटीपी प्लांट बनाने का है। 45 किमी. में से करीब 39 किमी. तक लाइन डल चुकी है। केन्द्र की हिस्सेदारी का पैसा अभी तक कम्पनी को नहीं मिला है, ऐसे में कार्य बंद पड़ा है। केन्द्र सरकार के पास हमारी कम्पनी की ओर से मैं भी कई बार जा चुका हूं। चूंकि, एमओयू केन्द्र सरकार और एसईपीडी के बीच हुआ है। ऐसे में प्रोजेक्ट की किश्त भी एसोसिएशन के खाते में ही आएगी। - प्रतीक राठौड़, एजीएम एडवेंट एनवीरो


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